केरल के पलक्कड़ ज़िले के पश्चिमी घाट पर स्थित 'साइलेंट वैली' अपनी जैव विविधता के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है. उत्तर में नीलगिरि की पहाडि़यां और दक्षिण में फैले मैदान के बीच होने के कारण ये घाटी 'साइलेंट वैली' के नाम से जानी जाती है.
साइलेंट वैली केरल के अंतिम वर्षा वनों के रूप में भी प्रसिद्ध है. इसलिए साल 1984 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा हासिल हुआ. वहीं साल 2012 में यूनेस्को ने इसे 'विश्व धरोहर' की सूची में शामिल किया
अगर आप भी घूमने-फिरने के शौक़ीन हैं, तो 'साइलेंट वैली' एक ऐसी जगह है जहां जाकर आप वेकेशन का जमकर लुत्फ़ उठा सकते हैं. यहां की ख़ूबसूरती को निहारने के साथ-साथ आप यहां जंगल सफ़ारी का आनंद भी ले सकते हैं. 'साइलेंट वैली' अपनी ख़ूबसूरती के साथ-साथ कई तरह-तरह के पशु-पक्षियों और फूल-पौधों के लिए भी जानी जाती है.
राष्ट्रीय उद्यान होने के कारण 'साइलेंट वैली' में कई तरह के जानवर जैसे हाथी, बाघ, सांभर, चीता वांडरू लंगूर व जंगली सुअर देखने को मिल जायेंगे. इसके साथ ही ये पूरी घाटी 1000 से भी ज़्यादा फूलों से भी महकती नज़र आती है.
इसके साथ ही यहां करीब 110 किस्म के ऑर्किड, 200 किस्म की तितलियां व पक्षियों की करीब 170 प्रजातियां भी पाई जाती हैं.
साइलेंट वैली भारत के सबसे लुप्तप्राय स्तनपायी प्राणियों में से एक वांडरू प्रजाति के लंगूर के लिए भी प्रसिद्ध है
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