शोले फिल्म की कास्टिंग के समय अभिनेता धर्मेंद्र, 'ठाकुर' का किरदार करना चाहते थे। मगर फिल्म के निर्माता-निर्देशक ने उन्हें बताया कि अगर वो ठाकुर का किरदार करेंगे तो वीरू का किरदार संजीव कुमार करेंगे और उनकी जोड़ी हेमा मालिनी के साथ होगी।
धर्मेंद्र जानते थे कि उनके अलावा संजीव कुमार भी हेमा मालिनी को पसंद करते है और इसी कारण धर्मेंद्र ने वीरू के किरदार के लिए हामी भरी थी।
साल १९५० के समय में मध्यप्रदेश के बीहड़ों में 'गबरा' नाम का एक सचमुच में असली डाकू हुआ करता था, जो गांव वालों के अलावा पुलिस वालों के नाक और कान काट दिया करता था। इसी कारण तीन राज्यों की पुलिस ने उसके ऊपर ५० हजार का इनाम रखा हुआ था। फिल्म का किरदार 'गब्बर सिंह' इसी डकैत से प्रेरित है।
फिल्म के मुख्य किरदार जय और वीरू के नाम फिल्म के लेखक सलीम साहब ने अपने कॉलेज के दो दोस्तों के नाम पर रखा था, वीरेन सिंह और जय सिंह था।
फिल्म शोले के बाद से ही बॉलीवुड में पटकथा लेखकों की डिमांड और पैसे दोनों बढ़ गए थे और उन्हें अपने काम के अच्छे-खासे दाम मिलना शुरू हुए थे। आपको बता दें कि इस फिल्म के गाने 'ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे' को फिल्माने के लिए पूरे २१ दिन का समय लगा था। शोले पहली फिल्म थी जो १०० से भी ज्यादा सिनेमाघरों में २५ हफ्ते से भी ज्यादा समय तक लगी रही थी।
मुंबई के 'मिनर्वा थियटर' में फिल्म शोले लगातार ५ सालों तक लगी रही थी। Third party image reference फिल्म में 'ठाकुर' का किरदार पहले एक रिटायर्ड आर्मी अफसर का था, जिसे फिल्म निर्माताओं ने बाद में बदलकर पुलिस अफसर में कर दिया था। फिल्म का एक और मशहूर किरदार 'सुरमा भोपाली' जिसे जगदीपजी ने निभाया था, एक असल किरदार था।
भोपाल में ही रहने वाले सुरमा एक वन विभाग के अधिकारी थे और जगदीपजी के ही जान-पहचान वाले थे। फिल्म में गब्बर सिंह के अहम् किरदार को सबसे पहले डेनी डेन्जोप्पा को दिया गया था, मगर उस समय डेनी, फ़िरोज़ खान की फिल्म धर्मात्मा की शूटिंग में व्यस्त थे और तारीखें नहीं मिलने की वजह से यह रोल अभिनेता अमजद खान की झोली में आ गया।
फिल्म का एक मशहूर डायलॉग 'कितने आदमी थे' को करीब ४० बार फिल्माया गया था और बाद में इन्हीं में से एक सीन को फाइनल कर चुना गया था। अचरज की बात यह है कि इस फिल्म में 'सांभा' के किरदार को पूरी फिल्म में एक ही लाइन का 'पूरे पचास हज़ार' डायलॉग दिया गया था, मगर फिर भी उस किरदार को निभाने वाले मैक मोहन को आज भी सांभा के नाम से ही जाना जाता है।
शुरुवात में जय के किरदार के लिए शत्रुघ्न सिन्हा को चुना गया था। बाद में यह किरदार अमिताभ बच्चन को दिया गया। फिल्म 'जंजीर' ने अमिताभ जी को स्टार बनाया था, मगर फिल्म 'शोले' ने अमिताभ जी को सुपरस्टार बनाया था। फिल्म में हेमा मालिनी और धर्मेंद्र के बीच फिल्माए गए सीन को ख़राब करने के लिए धर्मेंद्र जी काम करने वाले लाइट बॉयज को पैसे दिया करते थे, ताकि उन्हें फिर से फिल्माया जा सके और धर्मेंद्र जी को हेमाजी के साथ ज्यादा समय बिताने का मौका मिलते रहे।
धर्मेंद्र और हेमा मालिनी ने इस फिल्म की रिलीज़ के ५ साल बाद शादी कर ली थी मगर अमिताभ बच्चन और जया बच्चन की शादी फिल्म की शूटिंग से चार महीने पहले ही हुई थी। शूटिंग के दौरान जया बच्चन जी गर्भवती थी, जिन्होंने बाद में श्वेता बच्चन को जन्म दिया था। बैंगलोर से करीब ५० किलोमीटर दूर स्थित 'रामनगर गांव' को आज भी 'रामगढ़' के नाम से जाना जाता है, क्यूंकि यही वो जगह थी जहां फिल्म शोले की शूटिंग हुई थी।
इतना ही नहीं इस क्षेत्र के आस-पास स्थित पत्थरों को शोले पत्थरों के नाम से जाना जाता है और यह एक पर्यटक स्थल भी बन गया है। शोले ही वो पहली फिल्म थी जिसे ७० मिलीमीटर में बनी थी और पहली फिल्म जिसमें 'स्टीरियो फोनिक साउंड' का इस्तेमाल किया गया था। Third party image reference इस फिल्म का अंत ठाकुर द्वारा गब्बर को मारने से होता है, मगर सेंसर बोर्ड वालों ने कुछ सीन ज्यादा हिंसक लगने की वजह से फिर से फिल्माने की हिदायत दी।
रिलीज़ के १५ सालों तक दर्शकों ने इन एडिटेड वर्जन को फिल्म में देखा, मगर बाद में साल १९९० फिल्म का ओरिजिनल वर्जन भी लोगों के लिए उपलब्ध कराया गया था। फिल्म के मशहूर गब्बर सिंह के किरदार को निभाने वाले अमजद खान को फिल्म में लेने के लिए एक ही इंसान ने हामी नहीं दी थी, वो थे जावेद अख्तर साहब, क्यूंकि उन्हें लगता था कि अमजद खान की आवाज गब्बर सिंह के किरदार के लिए दमदार नहीं है।
एक ऐतिहासिक फिल्म होने और 'फिल्मफेयर' में ९ नॉमिनेशन होने के बावजूद इस फिल्म को केवल एक ही फिल्मफेयर अवार्ड मिला था और वो था 'बेस्ट एडिटिंग' का, जो एम एस शिंदे को दिया गया। फिल्म के डायलॉग को उस समय भी बेहद पसंद किया गया था और आज भी पसंद किया जाता है।
धर्मेंद्र जानते थे कि उनके अलावा संजीव कुमार भी हेमा मालिनी को पसंद करते है और इसी कारण धर्मेंद्र ने वीरू के किरदार के लिए हामी भरी थी।
साल १९५० के समय में मध्यप्रदेश के बीहड़ों में 'गबरा' नाम का एक सचमुच में असली डाकू हुआ करता था, जो गांव वालों के अलावा पुलिस वालों के नाक और कान काट दिया करता था। इसी कारण तीन राज्यों की पुलिस ने उसके ऊपर ५० हजार का इनाम रखा हुआ था। फिल्म का किरदार 'गब्बर सिंह' इसी डकैत से प्रेरित है।
फिल्म के मुख्य किरदार जय और वीरू के नाम फिल्म के लेखक सलीम साहब ने अपने कॉलेज के दो दोस्तों के नाम पर रखा था, वीरेन सिंह और जय सिंह था।
फिल्म शोले के बाद से ही बॉलीवुड में पटकथा लेखकों की डिमांड और पैसे दोनों बढ़ गए थे और उन्हें अपने काम के अच्छे-खासे दाम मिलना शुरू हुए थे। आपको बता दें कि इस फिल्म के गाने 'ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे' को फिल्माने के लिए पूरे २१ दिन का समय लगा था। शोले पहली फिल्म थी जो १०० से भी ज्यादा सिनेमाघरों में २५ हफ्ते से भी ज्यादा समय तक लगी रही थी।
मुंबई के 'मिनर्वा थियटर' में फिल्म शोले लगातार ५ सालों तक लगी रही थी। Third party image reference फिल्म में 'ठाकुर' का किरदार पहले एक रिटायर्ड आर्मी अफसर का था, जिसे फिल्म निर्माताओं ने बाद में बदलकर पुलिस अफसर में कर दिया था। फिल्म का एक और मशहूर किरदार 'सुरमा भोपाली' जिसे जगदीपजी ने निभाया था, एक असल किरदार था।
भोपाल में ही रहने वाले सुरमा एक वन विभाग के अधिकारी थे और जगदीपजी के ही जान-पहचान वाले थे। फिल्म में गब्बर सिंह के अहम् किरदार को सबसे पहले डेनी डेन्जोप्पा को दिया गया था, मगर उस समय डेनी, फ़िरोज़ खान की फिल्म धर्मात्मा की शूटिंग में व्यस्त थे और तारीखें नहीं मिलने की वजह से यह रोल अभिनेता अमजद खान की झोली में आ गया।
फिल्म का एक मशहूर डायलॉग 'कितने आदमी थे' को करीब ४० बार फिल्माया गया था और बाद में इन्हीं में से एक सीन को फाइनल कर चुना गया था। अचरज की बात यह है कि इस फिल्म में 'सांभा' के किरदार को पूरी फिल्म में एक ही लाइन का 'पूरे पचास हज़ार' डायलॉग दिया गया था, मगर फिर भी उस किरदार को निभाने वाले मैक मोहन को आज भी सांभा के नाम से ही जाना जाता है।
शुरुवात में जय के किरदार के लिए शत्रुघ्न सिन्हा को चुना गया था। बाद में यह किरदार अमिताभ बच्चन को दिया गया। फिल्म 'जंजीर' ने अमिताभ जी को स्टार बनाया था, मगर फिल्म 'शोले' ने अमिताभ जी को सुपरस्टार बनाया था। फिल्म में हेमा मालिनी और धर्मेंद्र के बीच फिल्माए गए सीन को ख़राब करने के लिए धर्मेंद्र जी काम करने वाले लाइट बॉयज को पैसे दिया करते थे, ताकि उन्हें फिर से फिल्माया जा सके और धर्मेंद्र जी को हेमाजी के साथ ज्यादा समय बिताने का मौका मिलते रहे।
धर्मेंद्र और हेमा मालिनी ने इस फिल्म की रिलीज़ के ५ साल बाद शादी कर ली थी मगर अमिताभ बच्चन और जया बच्चन की शादी फिल्म की शूटिंग से चार महीने पहले ही हुई थी। शूटिंग के दौरान जया बच्चन जी गर्भवती थी, जिन्होंने बाद में श्वेता बच्चन को जन्म दिया था। बैंगलोर से करीब ५० किलोमीटर दूर स्थित 'रामनगर गांव' को आज भी 'रामगढ़' के नाम से जाना जाता है, क्यूंकि यही वो जगह थी जहां फिल्म शोले की शूटिंग हुई थी।
इतना ही नहीं इस क्षेत्र के आस-पास स्थित पत्थरों को शोले पत्थरों के नाम से जाना जाता है और यह एक पर्यटक स्थल भी बन गया है। शोले ही वो पहली फिल्म थी जिसे ७० मिलीमीटर में बनी थी और पहली फिल्म जिसमें 'स्टीरियो फोनिक साउंड' का इस्तेमाल किया गया था। Third party image reference इस फिल्म का अंत ठाकुर द्वारा गब्बर को मारने से होता है, मगर सेंसर बोर्ड वालों ने कुछ सीन ज्यादा हिंसक लगने की वजह से फिर से फिल्माने की हिदायत दी।
रिलीज़ के १५ सालों तक दर्शकों ने इन एडिटेड वर्जन को फिल्म में देखा, मगर बाद में साल १९९० फिल्म का ओरिजिनल वर्जन भी लोगों के लिए उपलब्ध कराया गया था। फिल्म के मशहूर गब्बर सिंह के किरदार को निभाने वाले अमजद खान को फिल्म में लेने के लिए एक ही इंसान ने हामी नहीं दी थी, वो थे जावेद अख्तर साहब, क्यूंकि उन्हें लगता था कि अमजद खान की आवाज गब्बर सिंह के किरदार के लिए दमदार नहीं है।
एक ऐतिहासिक फिल्म होने और 'फिल्मफेयर' में ९ नॉमिनेशन होने के बावजूद इस फिल्म को केवल एक ही फिल्मफेयर अवार्ड मिला था और वो था 'बेस्ट एडिटिंग' का, जो एम एस शिंदे को दिया गया। फिल्म के डायलॉग को उस समय भी बेहद पसंद किया गया था और आज भी पसंद किया जाता है।
No comments:
Post a Comment